⚜️बोधकथा - गुलाब और बबूल⚜️
संत परमानंद अपने शिष्यों को ज्ञान एवं सदाचार की शिक्षा दिया करते थे।
एक दिन वे उन्हें लेकर कहीं जा रहे थे।
रास्ते में देखा कि अनेक बेसहारा बच्चे इधर-उधर घूम रहे हैं।
तभी उनका एक युवा शिष्य अनंत बोला- गुरुदेव, ये बच्चे अनाथ मालूम होते हैं।
एक दिन ये भी पलकर बड़े हो जाएंगे।
हम भी कभी ऐसे ही थे।
मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि जब सब अपने आप बड़े हो ही जाते हैं तो उन्हें शिक्षा क्यों दी जाती है? ऐसा तो नहीं है कि शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अधिक खूबसूरत होता है।
कई बार अशिक्षित व अनाथ व्यक्ति भी अत्यंत रूपवान होता है।
शिष्य की बात सुनकर संत परमानंद सबको लेकर आश्रम में आए।
उन्होंने बबूल के पौधे की ओर इशारा करके कहा- यह बबूल का पौधा अधिक ध्यान न रखने पर भी स्वत: बड़ा हो गया है, जबकि पास ही लगे गुलाब के पौधे की विशेष देखभाल करनी पड़ती है।
अगर ऐसा नहीं करेंगे तो कभी भी गुलाब का फूल खिल नहीं पाएगा।
गुलाब के पौधे की देखभाल करने पर वह सुंदर फूल देता है, जबकि बबूल के पौधे पर कांटों के सिवाय कुछ नहीं मिलता!
बुराई ग्रहण करना आसान है, जबकि सदगुणों और अच्छाइयों को ग्रहण करने के लिए यह अनिवार्य है कि व्यक्ति को उचित शिक्षा प्रदान की जाए।
इसलिए बच्चों को शिक्षा दी जाती है,
ताकि वे भविष्य में अच्छे नागरिक बन सकें।
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