⚜️बोधकथा - दूसरों की भलाई⚜️
संत रब्बी इसाक के शिष्य थे- रब्बी नहमन।
एक दिन नहमन ने अध्ययन पूरा करने के बाद इसाक से अपने लिए दुआ करने को कहा।
रब्बी इसाक ने जवाब में एक कहानी सुनानी शुरू की-
'एक व्यक्ति किसी रेगिस्तान में यात्रा कर रहा था।
उसके पास भोजन समाप्त हो गया, तभी उसे वहां एक पेड़ दिखाई दिया जिस पर पके हुए फल लगे थे।
उसने उस पेड़ के मीठे और रसीले फल खाए और वहीं छांव में आराम करने लगा।
नींद टूटी तो उठकर पेड़ के नीचे एक सोते से पानी पिया।
उसने बेहतर महसूस किया और बोला- मैंने जीवन में ऐसे मधुर फल नहीं खाए।
जब मेरे प्राण संकट में थे तब इस पेड़ ने मुझे भोजन और आराम करने के लिए आश्रय दिया।
मैं कैसे इसे शुक्रिया कहूं।
इसे क्या दुआएं दूं?'
तभी रब्बी इसाक नहमन से बोले-
'क्या उस आदमी को यह दुआ करनी चाहिए कि उस पेड़ के फल और मीठे हों?
यह मूर्खता होगी क्योंकि उसके फल वह पहले ही चख चुका है।
यदि यह दुआ दे कि तुम और अधिक छांवदार बनो तो वह पहले ही उसकी छांव में आराम कर चुका है और यदि वह यह कहे कि तुम्हारी जड़ों के पास सोता बना रहे, तो वह भी मौजूद है।'
रब्बी नहमन ने पूछा- 'आप ही बताएं उस पेड़ को क्या दुआ दी जानी चाहिए?'
रब्बी इसाक ने कहा- 'यह दुआ करनी चाहिए कि सभी पेड़ इसी के समान कल्याणकारी बनें और यही बात तुम पर भी लागू होती है।
मैं दुआ करता हूं कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारी तरह ही बड़े हों और दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करें।
दुआ किसी के लिए सुख की कामना मात्र नहीं है।
वह तो कल्याण भाव के विकास की प्रार्थना होती है।
अर्थात अपने लिए जीना कोई जीना नहीं है, दूसरों के लिए भले काम करना ही असल जीवन है।
यदि दुआ ही मांगनी है तो सभी के लिए सुख और शांति की दुआ मांगें।
ईश्वर सबकी जरूरत जानता है, उन्हे बिना मांगे पूरा भी करता है।
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