Tuesday, 9 June 2020

बोधकथा - चेले की भूल


⚜️बोधकथा - चेले की भूल⚜️

     एक महात्मा बहुत ज्ञानी थे, पर अंतर्मुखी थे।
 अपनी ही साधना में लीन रहते थे। 
एक बार एक लडके की प्रार्थना पर उसे अपना चेला बना लिया। 
चेला बहुत चंचल प्रकृति का था। ज्ञान-ध्यान में उसका मन नहीं लगता था। 
गुरु ने कई बार उसे समझाने की चेष्टा की। 
पर सफलता नहीं मिली।

   दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती है -यह सोचकर एक दिन चेला महात्माजी से बोला -गुरुदेव! मुझे कोई चमत्कार सिखा दें।
 गुरु ने कहा, वत्स! चमत्कार कोई काम की वस्तु नहीं है।
 उससे एक बार भले ही व्यक्ति प्रसिद्धि पा ले, लेकिन अंततोगत्वा उसका परिणाम अच्छा नहीं होता।
   पर चेला अपनी बात पर अड़ा रहा। बालहठ के सामने गुरुजी को झुकना पड़ा। 
उन्होंने अपने झोले में से एक पारदर्शी डंडा निकाला और चेले के हाथ में उसे थमाते हुए कहा, यह लो चमत्कार। 
इस डंडे को तुम जिस किसी की छाती के सामने करोगे, उसके दोष इसमें प्रकट हो जाएंगे। चेला डंडे को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।
 गुरु ने चेले के हाथ में डंडा क्या थमाया, मानो बंदर के हाथ में तलवार थमा दी। कोई भी व्यक्ति उस आश्रम में आता, चेला हर आगंतुक के सीने के सामने उस डंडे को घुमा देता। 
फलत: उसकी कमजोरियां उसमें प्रकट हो जातीं और चेला उनका दुष्प्रचार शुरू कर देता। 
गुरुजी सारी बात समझ गए। एक दिन उन्होंने चेले से कहा, एक बार डंडा अपनी ओर भी घुमाकर देख लो, इससे स्वयं का परीक्षण हो जाएगा कि आश्रम में आ कर अपनी साधना से तुमने कितनी प्रगति की है।
 चेले को बात जंची, उसने फौरन डंडा अपनी ओर किया।
 लेकिन देखा कि उसके भीतर तो दोषों का अंबार लगा है। 
शर्म से उसका चेहरा लटक गया। 

वह तत्काल गुरु के चरणों में गिर पड़ा और अपनी भूल की क्षमा मांगते हुए बोला, आज से मैं दूसरों के दोष देखने की भूल नहीं करूंगा।

*मैं अपराधी जन्मका*
*नक् सीश भर विकार!*
*तुम दाता दुखभंजना*
*मेरा करो संवार!!*

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