एक गांव के नजदीक एक साधु ने झोपड़ी बना रखी थी।
धूप और थकान से व्याकुल राहगीर जब दो क्षण के लिए वहां आराम करने के लिए रुकते तो वह उनको पानी पिलाते, छाया में बैठाते और उनका हालचाल पूछते।
बातों-बातों में चर्चा छिड़ती कि आगे के गांव के लोग कैसे हैं, उनका स्वभाव कैसा है तो साधु उनके सवाल के जवाब में उनसे ही पूछते कि वे जिस गांव से आ रहे हैं, वहां के लोग अच्छे हैं या बुरे?
कुछ लोग कहते कि वे जिस गांव से आ रहे हैं वहां के लोग बहुत भले हैं।
यह सुनकर साधु उनसे कहते कि आगे वाले गांव के लोग भी उतने ही अच्छे हैं।
वे उनका आदर सत्कार करेंगे, लेकिन कुछ लोग पिछले गांव के बारे में कहते कि वहां के लोग बहुत दुष्ट हैं और वे कभी लौटकर नहीं जाएंगे।
यह सुनकर साधु उनसे कहते कि आगे वाले गांव के लोग भी उतने ही अच्छे हैं।
वे उनका आदर सत्कार करेंगे, लेकिन कुछ लोग पिछले गांव के बारे में कहते कि वहां के लोग बहुत दुष्ट हैं और वे कभी लौटकर नहीं जाएंगे।
ऐसे लोगों को साधु कहते कि आगे वाले गांव में भी बहुत दुष्ट लोग रहते हैं, वे वहां न जाएं।
एक दिन पास के गांव का आदमी किसी काम से दो दिन उस झोपड़ी में रहा।
एक दिन पास के गांव का आदमी किसी काम से दो दिन उस झोपड़ी में रहा।
जब उसने साधु के दो तरह के जवाबों को सुना तो उसे आश्चर्य हुआ।
उसने उनसे पूछा - बाबा, गांव के बारे में आप दो तरह के जवाब क्यों दे रहे हैं?
आप तो उन्हें अच्छा-बुरा दोनों बता रहे हैं।
साधु ने कहा- मैं जवाब देता नहीं हूं, जवाब लेता हूं।
राहगीर असल में अपने पिछले गांव के लोगों की प्रकृति के बारे में न बताकर स्वयं अपनी प्रकृति को ही बता रहे होते हैं।
लोगों की सोच जैसी होती है, उन्हें दूसरे लोग भी वैसे ही दिखते हैं।
आप तो उन्हें अच्छा-बुरा दोनों बता रहे हैं।
साधु ने कहा- मैं जवाब देता नहीं हूं, जवाब लेता हूं।
राहगीर असल में अपने पिछले गांव के लोगों की प्रकृति के बारे में न बताकर स्वयं अपनी प्रकृति को ही बता रहे होते हैं।
लोगों की सोच जैसी होती है, उन्हें दूसरे लोग भी वैसे ही दिखते हैं।
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