Tuesday, 2 June 2020

बोधकथा - देह और आत्मा


⚜️बोधकथा - देह और आत्मा⚜️

     धर्मकीर्ति ने महर्षि याज्ञवल्क्य के आश्रम में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
शिक्षा समाप्त कर वह घर लौटे। पिता धनपति ने शानदार स्वागत की व्यवस्था की थी।
परिवार के लोग धर्मकीर्ति के लौटने पर बहुत प्रसन्न हुए।
 2-3 दिनों तक उत्सव चलता रहा।
उसके बाद धनपति ने उनसे कहा कि वह अब सांसारिक दायित्व संभालें और विवाह करें।
   धर्मकीर्ति ने कहा-मैं विवाह नहीं करूंगा।
पिता ने पूछा-क्यों? धर्मकीर्ति ने कहा-हमारा शरीर नाशवान है। दुनिया के सारे संबंध नाशवान हैं। मैं तो मोक्ष प्राप्त करूंगा।
अविवेकी इस वैराग्य से विचलित धनपति ने उन्हें बहुत समझाया, पर धर्मकीर्ति टस से मस न हुए।

 फिर धनपति ने महर्षि याज्ञवल्क्य को यह बात बताई।
महर्षि ने धर्मकीर्ति को वापस आश्रम बुला लिया।
   एक दिन उन्होंने धर्मकीर्ति को फूल चुनने भेजा।
जिस उपवन में वह फूल चुन रहे थे, उसका मालिक संयोगवश वहीं आ गया।
उसने आव देखा न ताव, अपनी कुल्हाड़ी लेकर उन्हें मारने दौड़ा। धर्मकीर्ति भागकर आश्रम पहुंचे। फिर वह महर्षि के कक्ष में पहुंच गए।
उनके पीछे भागता हुआ उपवन का मालिक भी वहां पहुंच गया।
   महर्षि ने बड़े शांत स्वर में धर्मकीर्ति से कहा-वत्स, यह देह तो नाशवान है।
उपवन का स्वामी तुम्हारी इस देह को ही तो नष्ट करना चाहता है। करने दो।
 वह तुम्हारी आत्मा को तो क्षति नहीं पहुंचा रहा, फिर तुम भयभीत क्यों हो?
धर्मकीर्ति को कोई जवाब न सूझा। वह महर्षि को अपलक देखते रह गए।
 महर्षि ने उन्हें समझाया-आत्मा के साथ देह भी प्रातिभासीक सत्य है।
जाओ, दोनों को साधो। देह और आत्मा, दोनों के ही कल्याण की साधना करो।
 तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। धर्मकीर्ति वापस घर आ गए।

🚩🚩🚩

No comments:

Post a Comment