Wednesday, 27 May 2020

बोधकथा - जीवन सत्य


⚜️बोधकथा - जीवन सत्य⚜️

एक बहुत बडे प्रवचनकार जी के प्रवचन  में एक बूढ़ी धोबिन निरंतर देखी जाती थी। 

लोगों को हैरानी हुई : एक अनपढ़ गरीब औरत प्रवचन जैसी  गंभीर वार्ताओं को क्या समझती होगी!

 किसी ने आखिर उससे पूछ ही लिया कि उसकी समझ में क्या आता है? 

   उस बूढ़ी धोबिन ने जो उत्तर दिया, वह अद्भुत था।

 उसने कहा, ”मैं जो नहीं समझती, उसे तो क्या बताऊं। 

लेकिन, एक बात मैं खूब समझ गई हूं और पता नहीं कि दूसरे उसे समझे हैं या नहीं। 
मैं तो अनपढ़ हूं और मेरे लिए एक ही बात काफी है। 
उस बात ने मेरा सारा जीवन बदल दिया है। 
और वह बात क्या है? 

वह यह है कि मैं भी प्रभु से दूर नहीं हूं,
एक दरिद्र अज्ञानी स्त्री से भी प्रभु दूर नहीं है।
प्रभु निकट है- निकट ही नहीं, स्वयं में है। 

यह छोटा सा सत्य मेरी दृष्टि में आ गया है और अब मैं  नहीं समझती कि इससे भी बड़ा कोई और सत्य हो सकता है!” 

  🔅जीवन बहुत तथ्य जानने से नहीं, किंतु सत्य की एक छोटी -सी अनुभूति से ही परिवर्तित हो जाता है।  

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