Wednesday, 27 May 2020

बोधकथा - कछुए से शिक्षा



⚜बोधकथा - कछुए से शिक्षा⚜️

      एक साधु गंगा किनारे झोपड़ी बनाकर रहते थे।
सोने के लिए बिस्तर, पानी पीने के लिए मिट्टी का घड़ा और दो कपड़े- बस, यही उनकी जमा-पूंजी थी।
 उन्होंने एक कछुआ पाल रखा था।
सुबह स्नान कर वे पास की बस्ती में जाते और वहां कोई न कोई गृहस्थ उन्हें रोटी दे देता।
कछुए के लिए वे थोड़े चने भी मांग लेते थे।
वे रोटी खाते और कछुआ भीगे चने खाता।
उनकी पहचान उस कछुए से हो गई थी।
 बहुत से लोग उन्हें कछुआ वाला बाबा भी कहते थे।
 पर, एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे पूछा- आपने यह गंदा जीव क्यों पाल रखा है?
इसे गंगा में डाल दीजिए।
   उस व्यक्ति की बात सुनकर साधु बोले- कृपया ऐसा न कहें। इस कछुए को मैं अपना गुरु मानता हूं।
साधु की बात सुनकर व्यक्ति हंसते हुए बोला - भला कछुआ भी किसी का गुरु बन सकता है?
 साधु बोले- देखो, किसी तरह की आहट पाकर या किसी के स्पर्श से यह अपने सभी अंग भीतर भीतर समेत लेता है।
 मनुष्य को भी इस प्रकार लोभ, क्रोध, हिंसा आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाकर रखना चाहिए।
ये चीजें उसे कितना भी आमंत्रण दें, किंतु इनसे अप्रभावित रहना चाहिए।
इस कछुए को जब-जब देखता हूं, मुझे यह बात याद आ जाती है। यह कछुआ मुझे सदैव ही प्रेरणा देता है।
ईश्वर ने संपूर्ण प्रकृति की रचना सोद्देश्य की है।
मानव जीवन को सुख व शांति से परिपूर्ण करने वाले सभी प्रेरक तत्व प्रकृति में मौजूद हैं।
 आवश्यकता इन्हें पहचानने की है।
वह व्यक्ति लज्जित हो गया। उसने साधु से अपनी बात के लिए क्षमा मांगी।
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