⚜️बोधकथा - व्यवहार कुशलता⚜️
राजा नृप सिंह के प्रधानमंत्री वृद्ध हो गए थे।
प्रजा के बीच से किसी योग्य और व्यवहार कुशल व्यक्ति को यह पद देने की दृष्टी से तीन युवाकोंको को चुना गया।
वे काफी पढ़े-लिखे विद्वान थे पर उनकी व्यवहार कुशलता की परीक्षा के लिए राजा ने उनसे कहा, 'तुम तीनों को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया जाएगा और बाहर से ताला लगा दिया जाएगा।
तुम में से जो भी व्यक्ति आधे घंटे के अंदर ताला खोल कर बाहर आ जाएगा, उसे ही प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा।'
यह सुनकर तीनों हैरत से एक-दूसरे को देखने लगे। उन्हें यह असंभव सी परीक्षा लगी।
कुछ देर बाद उन्हें कमरे में बंद कर दिया गया।
पहले कमरे में बंद व्यक्ति ने सोचा कि मात्र आधे घंटे में बाहर से बंद ताले को खोलना असंभव है। वह चुपचाप वहां रखे बिस्तर पर लेट गया।
दूसरे कमरे में बंद व्यक्ति इधर-उधर घूमता रहा और सोचता रहा कि किस तरह बाहर के ताले को अंदर से खोला जा सकता है। लेकिन उसे भी कुछ नजर नहीं आया।
तभी तीसरे कमरे का दरवाजा खुला और बाहर खड़े दूतों ने आवाज लगाई -'नए प्रधानमंत्री की जय हो।'
दोनों कमरों में बंद व्यक्ति बेचैनी से सोचते रहे कि तीसरे व्यक्ति ने दरवाजा कैसे खोला? इसके बाद दोनों उम्मीदवारों को राजा के सामने बुलाया गया।
राजा ने कहा, 'तीसरे उम्मीदवार ने परीक्षा में सफलता पाई है।
प्रधानमंत्री को शिक्षित होने के साथ-साथ व्यवहार कुशल होना भी जरूरी है। वास्तव में कमरों में ताला लगाया ही नहीं गया था।
केवल तीसरे को छोड़कर आपने इसे खोलने का प्रयास ही नहीं किया।
जबकि तीसरे ने इस पर विचार किया कि जब सवाल दिया गया है तो निश्चित समय में ही उसका हल भी आसपास होगा।
इसलिए वह विजयी रहा।' दोनों उम्मीदवार लज्जित हो गए।
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