⚜️बोधकथा - परिंदों के साथ⚜️
एक व्यक्ति किसी प्रसिद्ध संत के पास धर्म संबंधी ज्ञान हासिल करने गया।
उस संतकी चारों ओर ख्याति थी। कहा जाता था कि उनके आशीर्वाद से बीमार लोग स्वस्थ हो जाते थे और बहुतों की परेशानियां दूर हो जाती थीं। दूर प्रांतों से दुखी-पीड़ित लोग उनके यहां दुआएं मांगते और प्रसन्न होकर जाते।
जब वह व्यक्ति संत के पास पहुंचा तो उसने देखा कि संत के हाथ में एक टोकरी थी और वे उसमें से दाना निकालकर पक्षियों को चुगा रहे थे।
परिंदे मजे में दाना चुग रहे थे।
यह देख संत किसी बच्चे की तरह खुश हो रहे थे।
इस तरह दाना चुगाते हुए लंबा समय बीत गया। संत ने उस व्यक्ति की ओर देखा तक नहीं।
वह शख्स परेशान हो गया और जब वह संत की और बढ़ा, तो संत ने उसे बिना कुछ कहे उसके हाथ में टोकरी थमा दी और कहा- अब तुम पक्षियों के साथ मजे करो।
वह व्यक्ति सोचने लगा, कहां मैं इनसे आध्यात्मिक साधना का रहस्य जानने आया हूं और ये हैं कि मुझे पक्षियों को दाना चुगाने को कह रहे हैं।
संत ने उसके मन की बात पढ़ ली और बोले-
स्वयं की परेशानियों को भुलाकर हर जीव को आनंद पहुंचाने का प्रयत्न ही जीवन की हर सिद्धि और आनंद का राज है।
यदि तुम स्वयं सुख और आनंद पाना चाहते हो तो वही दूसरे को भी देना सीखो।
तुम यदि यह साध सके तो समझ लो यही तुम्हारी साधना है।
जो लोग आध्यात्मिकता को किसी खास नियम और जीवन शैली में देखते हैं वे उसके नैसर्गिक पक्ष से वंचित रह जाते हैं।
आध्यात्मिक जीवन का अर्थ है दूसरों को सुख बांटना।
ऐसा करने पर परमात्मा का वैभव बरसने लगता है और साधक की हर दुआ कबूल हो जाती है। संतकी इस बात से वह व्यक्ति संतुष्ट हुआ।
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